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कुर्बानी के बकरों की ब्रिकी अब ऑनलाइन

नई दिल्ली: सिर्फ कपड़े, जूते या आधुनिक उपकरण ही ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं हैं, बल्कि अब कुर्बानी के बकरे भी ऑनलाइन खरीदे और बेचे जा रहे हैं। एक-दो साल पहले शुरू हुए इस चलन ने इस बार बकरीद पर काफी तेजी पकड़ ली है। भारतीय मुस्लिम समुदाय सोशल नेटवर्किं ग साइट, ऑनलाइन मार्केटिंग और ई-कॉमर्स साइट का इस्तेमाल बकरों की खरीद-फरोख्त के लिए कर रहा है।

ईद-उल-अजहा (बकरीद) 25 सितम्बर को मनाया जाना है। अपनी आर्थिक हैसियत के हिसाब से इस दिन मुसलमान कुछ खास जानवरों की कुर्बानी देते हैं। पहले ये पशु खुले बाजार में ही बेचे जाते थे। वक्त बदलने के साथ इस बिक्री का तरीका भी बदल गया। अब कोई भी ओएलएक्स और क्विकर जैसी वेबसाइट के जरिये भी कुर्बानी के जानवरों की खरीदारी कर सकता है।

वेबसाइट पर बिकने वाले कई बकरों की खासियतें भी जबरदस्त बताई गई हैं। जैसे कि ‘खूबसूरत और बेहद ईमानदार बकरा’ या फिर ‘सौ फीसदी आर्गेनिक घास खाने वाला बकरा।’ सैकड़ों वर्गीकृत विज्ञापन ऑनलाइन मिल जाएंगे, जिनमें जानवर की प्रजाति, उम्र, वजन, कद और उसके स्वच्छ होने का जिक्र किया गया है।

जानवरों की ऑनलाइन बिक्री करने वाले यह ऑफर भी दे रहे हैं कि एक निश्चित तिथि से पहले जानवर ‘बुक’ करने पर ‘डिस्काउंट’ दिया जाएगा और ‘फ्री होम डिलिवरी’ भी की जाएगी।

मुरादाबाद के शमीम अहमद के पास कई उन्नत प्रजातियों के नौ बकरे हैं। उन्होंने आईएएनएस को बताया कि बीते साल उन्होंने बकरों की आनलाइन बिक्री होते देखी थी। अब वह खुद यही कर रहे हैं।

शमीम ने कहा, “मुझे आइडिया पसंद आया। उन्नत प्रजाति के बकरे की कीमत एक से पांच लाख रुपये तक होती है। इसलिए हम इन्हें बीमारी पैदा करने वाले मुंबई के देओनार बूचड़खाने में नहीं रख सकते।”

दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में एक बकरा विक्रेता मिला। उसने अपना नाम मुन्ना बताया। उसने कहा कि इंटरनेट के जरिए बकरों की बिक्री की वजह से बिचौलियों से निपटने का झंझट खत्म हो गया है।

मजे की बात है कि ओएलएक्स और क्विकर तो बस कुछ मशहूर नाम हैं। गोटइंडिया डॉट कॉम नाम की वेबसाइट के बारे में कहा जा रहा है कि बकरों की खरीद-फरोख्त के लिए यह सर्वाधिक लोकप्रिय है।

कुर्बानी के जानवरों की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं में बहस भी छिड़ गई है। कुर्बानी के जानवर का एक निश्चित उम्र से ज्यादा का होना और स्वस्थ होना अनिवार्य बताया गया है। कुछ उलेमा का कहना है कि ये बातें आनलाइन कैसे जांची जा सकती हैं। फोटो से कैसे इनका अंदाज लगाया जा सकता है।

लेकिन जमात अहले हदीस ए हिंद के मुफ्ती मदनी ने जानवरों की आनलाइन खरीद-फरोख्त को धार्मिक रूप से वैध बताया। उन्होंने कहा कि वक्त बदल रहा है और बदलते वक्त के हिसाब से हमें बदलना चाहिए। इंटरनेट जिस तरह हमारी जिंदगी में शामिल हुआ है, उसे देखते हुए इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

मुहम्मद जुल्करनैन जुल्फी

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