साहित्य / सिनेमा

तुर्की की कहानी “राजकुमारी और मोची”

नामवर मुसन्निफ

गरमियों का दिन समाप्त हो रहा था। अस्त होते हुए सूर्य की अंतिम किरणें गजनी के नगर पर पिघले सोने की बाढ़ की तरह गुंबदों और मीनारों को चमकाती गिर रही थीं। देहात के आसपास खिले फूलों की सुगंध लिये ठंडी विश्रांत पवन थके कुलियों और बहिश्तियों के समुदाय को दिन भर के परिश्रम के बाद, सार्वजनिक फव्वारे के पास, विश्राम दे रही थी। भक्तजनों को प्रार्थना के लिए मीनारों से बुलाती मोअजन की आवाज बंद हो चुकी थी; शांति और खामोशी इस प्रकार छाई हुई थी कि कोई भी इसे वशीभूत किया हुआ नगर समझ सकता था, जिसपर जादूगर का डंडा फिरकर नींद का दौरा पड़ गया हो!

बड़े बाजार की दुकानों में से एक दुकान के द्वार पर चौकड़ी लगाए, जैसा पूरब में रिवाज है, अपनी चिलम पीता हुआ और ग्राहकों की प्रतीक्षा करता वह बैठा था। उसके चेहरे की छवि और दर्प आश्चर्य रूप से उसके विनीत काम के विपरीत थे; क्योंकि ‘सय्यद’ मोची था, जिसको कहना विचित्र होगा, वे मजाक में ‘फव्वारा ‘ कहते थे।

उसके तराशे नैन-नक्श तथा व्यक्तित्व की शिष्टता, अधिकृत महत्त्ववाले लोगों और उसकी वर्तमान स्थिति की अपेक्षा उसकी उत्तम कुलीनता का परिचय देते थे; क्योंकि पूरब में आकस्मिक और घोर क्रांति के कारण ऐसा प्रायः होता है कि किसान भी कुलीन नवाब बन जाते हैं।

सय्यद को शिक्षा की सुविधा प्राप्त हुई थी क्योंकि उसके पिता ने उसे गजनी के स्कूल में भेज दिया था जहाँ इसने पढ़ना और लिखना सीखा था- पूरब में इसकी उपेक्षा नहीं की जाती।

फिर सायंकाल को, जिसकी हम बात कर रहे थे, सय्यद अंत में अपनी दुकान बंद करने वाला था कि उसे सड़क पर एक घुमक्कड़ फकीर उसकी दुकान की ओर आता हुआ दिखाई दिया। फकीर उसके निकट पहुँच गया; उसके दयालु चेहरे में रुचि लेते हुए सय्यद ने उसका स्वागत किया और फकीर ने जूते के छिद्र की मरम्मत करने का निवेदन किया।

“धन्यवाद, मेरे बेटे, ” फकीर ने कहा, “परमात्मा ने तुम्हें अच्छा दिल दिया है, और तुम्हारी दया के बदले में, मैं तुम्हें बताऊँगा कि दिल के टुकड़ों की मरम्मत कैसे की जाती है।”

सय्यद ने अजनबी को अंदर आने का निमंत्रण दिया, खाना पेश किया और आधी रात तक बातें करते रहे। अंत में फकीर ने कहा, “देखो, तुम्हें सय्यद कहते हैं, परंतु तुम्हारा दिल उदास है और तुम अपने काम से संतुष्ट नहीं हो। सुनो, अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि इसकी मरम्मत कैसे की जाती है। तुमने जहाननामा और अजाब मखलूकात पढ़े हैं और विदेशों को अपनी आँखों से देखने की इच्छा करते हो। अब उठो, कल अपना सारा सामान बेच दो और दुनिया देखने के लिए निकल पड़ो, परंतु मैं तुम्हें परामर्श देता हूँ, पहला यह कि तुम अपने विश्वस्त साथी चुनो क्योंकि हजरत ने कहा है- ‘पहले साथी फिर ‘सड़क’; दूसरे, ऐसी जगह मत जाना जहाँ पानी न हो और तीसरे, सायंकाल के समय किसी नगर में प्रवेश मत करना। “

अगले दिन फकीर चला गया और सय्यद ने अपना सामान बेचकर चलने की तैयारी कर ली और व्यापारियों के साथ, जो नगर से जाने वाले थे, जाने का निश्चय कर लिया।

बिना किसी साहसी कृत्य का सामना किए, वे काफी समय तक चलते रहे जब तक सायंकाल शहर के निकट नहीं पहुँच गए। व्यापारियों को शहर में जाने के लिए जल्दी की, क्योंकि ऐसा न हो कि शहर के दरवाजे बंद हो जाएँ।

शहर से कुछ दूरी पर सय्यद को फकीर के शब्द याद आ गए कि सायंकाल होने पर शहर में प्रवेश नहीं करना और अपनी इच्छा प्रकट की कि वह पीछे रहेगा और अगले प्रातःकाल तक शहर में प्रवेश नहीं करेगा। पहले तो उसके साथियों ने उसके स्पष्ट भद्दे इरादे को दूर करने का भरसक प्रयास किया, परंतु अंत में यह देखते हुए कि उनके प्रयास सफल नहीं होंगे, वे उसे नदी किनारे बैठा छोड़कर शहर में जल्दी से चले गए। रात शीघ्र ही काली और दुःखदायी हो गई और सय्यद ने अपने विचारों के साथ अपने आपको अकेला पाया क्योंकि सितारे की मद्धिम सी किरण भी दृश्य को साफ नहीं कर पाई। वह उठा और नदी के किनारे को छोड़ता हुआ शहर में पहुँचा। यह न जानते हुए कि किधर गया था, वह अंत में शहर के कब्रिस्तान में आ पहुँचा। वह अंदर गया और कुछ समय तक मकबरों में घूमता रहा।

वह तूफान से बहुत पहले नहीं पहुँचा था- तूफान जो कुछ घंटे पहले धमकी दे रहा था, अपने सारे गुस्से के साथ फूट पड़ा। गरज के भयानक थप्पड़ आकाश को चीर देना चाहते थे और बिजली की दो नोकवाली चमक मकबरों को चमका रही थी; उन्हें विलक्षण और कुरूप बना रही थी। तूफान से बचने के लिए सय्यद एक मकबरे में चला गया और खेद कर रहा था कि उसने फकीर की बात क्यों मानी।

अंत में असंतोष पर काबू न रखते हुए वह मकबरे से बाहर खुली हवा में आया। जब मकबरे की सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, वह दो आदमियों को देखकर चकित रह गया। वे शहर की दीवार से किसी चीज को नीचे गिरा रहे थे दीवार, जो कब्रिस्तान के साथ लगी हुई थी। वह मकबरे के पीछे हो गया, ताकि वे लोग इसे देख न सकें। फिर उसने आदमियों को नीचे आते और अपने बोझे को उसी मकबरे में ले जाते देखा जहाँ वह पहले था। कुछ समय बाद दोनों आदमी पुनः प्रकट हुए और सय्यद को लगभग छूते हुए उसके पास से होकर कब्रिस्तान से चले गए।

सय्यद ने मकबरे में पुनः प्रवेश किया और रोशनी करने के बाद देखा कि दो आदमियों द्वारा लाया गया, वास्तव में एक कफन था जो उलटा पड़ा हुआ था। कफन के बाहर रक्त के धब्बे पड़े थे और उसके नीचे से भी रक्त रिस रहा था। सय्यद डर से भयभीत कुछ समय तक खड़ा रहा; उसके अवयव उसे धोखा देते हुए। प्रतीत होते थे और वह इतना पीला पड़ गया था कि महसूस होता था कि कब्रिस्तान में रहनेवाली किसी घुमक्कड़ आत्मा की जकड़ में आ गया हो।

उसका भय कितना बढ़ गया, जब उसे कफन हिलता हुआ प्रतीत हुआ! वह किसी तरह उसके पास गया और कौतूहल से प्रेरित अपने डर पर काबू पाया। कफन को सीधा किया, ढकने को उतारा और एक सुंदर युवती को कपड़े में बँधे हुए लेटे देखा-कपड़े की सफेदी रक्त के धब्बों से बड़ा भेद पैदा कर रही थी और रक्त का रंग गाढ़ा कर रही थी। सय्यद को युवती के मरने में कोई शंका नहीं थी, लेकिन वह कपड़ा उतारने लगा तो उसकी हैरानी की हद न रही; उसे लगा कि शव से आती हुई धीमी आवाज कह रही थी- ‘क्या तुम परमात्मा से नहीं डरते कि मुझे इस प्रकार नंगा कर रहो हो!”

अब यह आश्वस्त था कि वह जीवित शरीर था, सय्यद ने पूछा ‘ओ सुंदर युवती, क्या तुम्हें कष्ट हो रहा है? तुम्हें ऐसी स्थिति में देखकर मेरा दिल शोक कर रहा है कि मैंने तुम्हें मृतक समझा।”

“क्या तुम मेरी सहायता नहीं कर सकते?” युवती चिल्लाई- “यदि कर सकते हो तो करो, मैं तुम्हारी कृतज्ञ रहूँगी। मैं रक्त के बहाव से मर रही हूँ।” सय्यद ने तुरंत अपनी ऊपरी ढीली पोशाक उतार दी और उसके टुकड़े करके युवती के घावों को बाँध दिया।

दिन निकलते ही युवती को लेकर सय्यद ने नगर में प्रवेश किया, पूर्व इसके कि वहाँ किसी प्रकार की हलचल हो; वह एक कारवाँ सराय में गया और वहाँ के रखवाले को यह कहते हुए कि वह उसकी बहन है जिसपर डाकुओं ने सड़क पर आक्रमण किया था, अपना सामान एक कमरे में रखा।

कुछ ही समय में युवती के घाव भर गए; और एक दिन स्नानगृह से लौटने के बाद, जहाँ वह पहली बार ही गई थी, सय्यद को कलम, स्याही और कागज लाने के लिए कहा और छोटा पत्र लिखकर यह कहते हुए सय्यद को दिया कि वह एक्सचेंज जाए, जहाँ उसे बैठा हुआ एक व्यापारी मिलेगा। उसने उसका हुलिया भी बता दिया और वह छोटा पत्र उसको देने के लिए कहा।

“जो कुछ भी वह तुम्हें देगा, ” उसने कहा, “वह लाकर मुझे दे दो।” जब सय्यद एक्सचेंज में आया तो आश्वस्त होने के लिए उस व्यापारी को उसकी जगह बैठे देखा जहाँ युवती ने बताया था तथा जिसका हुलिया भी उससे बिलकुल मिलता था जैसाकि युवती ने बताया था और जिसको उससे पत्र देना था। सय्यद ने उसे सलाम किया, कुशलक्षेम पूछा और छोटा पत्र दे दिया।

व्यापारी ने पत्र ले लिया, उसे चूमा और माथे से लगाया, जैसाकि पूरब में रिवाज है; उसे पढ़कर अपनी कमर से बटुआ निकाला और सय्यद को दे दिया। सय्यद ने बटुआ ले लिया, जैसाकि युवती ने कहा था और कारवां सराय को लौट आया।

‘अब जाओ, ” युवती ने कहा, “एक छोटा सा मकान खरीद लो और जो बाकी बचे, उससे अपने और मेरे लिए कपड़े खरीद लो।” सय्यद ने युवती की प्रार्थना स्वीकार करने में समय नहीं गँवाया और शीघ्र ही मकान और कपड़े खरीद लिये और वे अपने मकान में चले गए। अपने नए घर में बसने के तुरंत बाद, युवती पुनः पत्र लिखने बैठ गई और सय्यद को पत्र देती हुई कहने लगी कि वह फिर वहाँ जाए और पत्र को युवा व्यापारी के हाथ में दे।

पहले की भाँति सय्यद वहाँ गया और व्यापारी को पत्र दिया। व्यापारी ने पत्र पढ़ा और इस बार दो बटुए सय्यद को दिए। सय्यद युवती के पास लौट आया; उसने कहा, “अब जाओ और कुछ घोड़े, कपड़े और गुलाम खरीदकर यहाँ ले आओ।”

सय्यद ने वैसा ही किया, जैसा उससे कहा गया था और जब यह सब हो गया तो युवती ने एक और पत्र लिखा और सय्यद को दिया। वह पहले की तरह व्यापारी के पास गया और सोने से भरे तीन बटुए लेकर लौट आया।

“अब, ” युवती ने कहा, “एक बटुआ लेकर तुम ऐसे बाजार में जाओ जहाँ तुम्हें एक दूसरा व्यापारी मिलेगा; उसका माल देखो और जो कीमत वह माँगता है, वही उसे दे दो।” युवा आदमी गया और वैसा ही किया, हालाँकि वह समझ नहीं पा रहा था कि यह सब क्या हो रहा था।

कुछ दिनों के बाद युवती ने सोने से भरे बाकी बटुए देते हुए व्यापारी से कुछ और माल खरीद लेने के लिए कहा, परंतु यह भी कहा कि माँगी हुई कीमत देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।

सय्यद व्यापारी के पास गया और उसका कुछ माल खरीदने की इच्छा प्रकट की। कई चीजें देखने के बाद उसने व्यापारी से भारी कीमतों में, एक पैसा भी कम करवाए बिना, अत्यंत बहुमूल्य माल खरीद लिया और उसी समय तुरंत भुगतान कर दिया।

व्यापारी ऐसे ग्राहक से अति प्रसन्न हुआ और सय्यद को अगली शाम अपने साथ गुजारने के लिए आमंत्रित कर दिया।

सय्यद युवती के पास लौट आया और सारा वृत्तांत कह सुनाया।

“जाओ, ” युवती ने कहा, “परंतु इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हें अपने सामने ही देखना है, इधर-उधर नहीं।”

अगली शाम सय्यद व्यापारी के घर गया; व्यापारी ने उसकी बहुत खातिरदारी की और उसने अत्यंत आनंदमयी शाम गुजारी, परंतु इधर-उधर देखने से ध्यानपूर्वक बचते हुए, जैसाकि युवती ने कहा था।

जब वह लौटा तो युवती को वह सब बताया जो वहाँ हुआ था; युवती ने कहा, “कल तुम जाओ और उसे अपने यहाँ आने का निमंत्रण दे आओ।” तदनुसार जब अगला दिन आया तो सय्यद व्यापारी के यहाँ गया और शाम को उसके साथ गुजारने के लिए आमंत्रित कर आया। व्यापारी मे बिस्मिल्लाह करते हुए उत्तर दिया- “मैं आऊँगा।” सय्यद घर लौटा और युवती को सूचित किया। उसने तुरंत घर को साफ-सुथरा बनाना शुरू कर दिया; शराब तैयार की, भुना मांस और फलों को तैयार किया तथा संगीतवालों को भी तैयार रहने के लिए आदेश दे दिया।

जब शाम का समय हुआ तो व्यापारी आना नहीं भूला। वह और सय्यद लगभग आधी रात तक खाते-पीते रहे। अंत में व्यापारी उठा और जाने के लिए आज्ञा माँगी, परंतु सय्यद ने, जिसको युवती ने समझा दिया था कि व्यापारी को जाने न दे, उसे रुक जाने पर जोर दिया; जाने के लिए उसके हठ करने पर सय्यद ने कहा- आज की रात आप यहाँ से न जाएँ और यहीं सो जाएँ; उसी समय उसने गद्दे लगाने और लेटने के लिए कहा।

व्यापारी के पास दूसरा उपाय नहीं था। अतः उसे सय्यद की बात माननी पड़ी। वह वहीं उसकी बगल में लेट गया। आधी रात के समय जब व्यापारी गहरी नींद सो रहा था तो युवती कमरे में आई। ज्यों ही वह पास से गुजरी तो उसके कपड़ों की खड़खड़ाहट ने सय्यद को जगा दिया, वह उठ बैठा और उसकी चौकसी करने लगा। वह व्यापारी के पास गई और उसके ऊपर झुककर उसके दिल में कटार घोंप दी। एक छोटी सी कराह के साथ, बिना कोई शब्द बोले, व्यापारी चल बसा।

युवती मुड़ी और यह देखकर कि सय्यद जाग रहा था, उससे बोली, “देखो अब वह समय है जब मैं अपनी कहानी तुम्हें सुनाऊँ, क्योंकि मेरे सब काम तुम्हें अद्भुत लगते होंगे। अब सुनो, ओ नौजवान! पूरी कहानी सुने बिना कोई परिणाम निकालने का प्रयास न करना।

“मैं इस नगर के राजा की बेटी हूँ। पराक्रमी सम्राटों के लंबे वंश, जिसने इस राज्य पर राज किया, का अंतिम वंशज यह चांडाल जिसको मारते हुए तुमने मुझे अभी देखा, इस नगर के एक कसाई का बेटा है। “एक दिन बुरे समय में, जब मैं स्नानगृह में गई तो इसकी सुंदर आकृति से मैं आकर्षित हो गई; इसकी आकृति इतनी सुंदर थी, जितना काला इसका दिल; यह दुश्चरित्र था। मैं इससे प्रेम करने लगी। इसे यह जानने में देर नहीं लगी कि इसके प्रति मैं कितनी उत्तेजित थी; अतः पत्र व्यवहार आरंभ हो गया। अंत में वह लड़की के वेश में मुझे मिला और मैं भी प्रायः वेश बदलकर उससे मिलती रही। मैंने उसे पैसा दिया और एक अच्छे व्यापारी के रूप में स्थापित किया और वह, जैसा तुमने देखा, नगर का अत्यंत धनी आदमी बन गया।

“एक दिन मैं अचानक उससे मिलने गई और सामान्य रूप से बिना बताए उसके कमरे में गई तो मेरी घृणा, मेरे क्रोध की हद न रही- मैंने उसके लिए क्या कुछ नहीं किया था, लेकिन क्या देखती हूँ कि वह किसी दूसरी औरत को लिये बैठा था। वह उसमें इतना खोया हुआ था कि कई मिनटों तक उसे कमरे में मेरे आने का पता ही नहीं चला। उसकी कृतघ्नता और विश्वासघात के लिए मैंने उसे डाँटा और उस औरत को पीटा, जिसके साथ वह बैठा हुआ था। वह एक शब्द भी नहीं बोला, परंतु कमरे से बाहर निकल गया। फिर वह दो आदमियों को साथ लेकर लौटा, जिन्होंने मुझे तुरंत पकड़ लिया और शरीर पर कई घाव किए। यह सोचकर कि मैं मर चुकी थी, मुझे कफन में डाला और नगर से बाहर ले गए, फिर दीवार से कब्रिस्तान ले जाकर मकबरे में रख दिया, जहाँ परमात्मा ने मुझे बचाने के लिए तुम्हें भेजा। अब उठो, मेरे पिता के पास जाओ और मेरे प्रकट होने की सूचना देकर उन्हें खुश कर दो, वह तुम्हें अच्छा इनाम देने में पीछे नहीं रहेंगे।”

उस प्रातःकाल जब राजकुमारी अपने व्यभिचारी प्रेमी से मिलने गई थी, राजा अपनी बेटी के लिए उदास हो गया था; उसने इसे नगर और उसके आसपास ढूंढ़वाया, परंतु व्यर्थ। यह समझते हुए कि वह स्वेच्छा से महल छोड़कर चली गई होगी; राजा ने प्रण किया कि उसके मिल जाने पर वह उसका विवाह एक मोची से कर देगा, ताकि उसे दंड मिल जाए।

जब सय्यद महल में पहुँचा तो उसने मुख्यमंत्री से राजा के सामने पेश होने की इच्छा जाहिर की और जो कुछ वह राजा को उसकी बेटी के बारे में कहना चाहता था, वह सब मुख्यमंत्री को बता दिया। मुख्यमंत्री उसको राजा के पास ले गया, जो बेटी की सुरक्षा के बारे में सुनकर अत्यंत खुश हुआ और उसको लाने के लिए तुरंत प्रबंध किया। इस बात की संतुष्टि हो जाने पर कि वह निर्दोष थी, राजा ने उसकी दोनों आँखों को चूमा और महल में लौट आने के लिए स्वागत किया तथा उसका विवाह मोची के साथ करने के अपने विवेकहीन प्रण पर खेद किया।

प्रसन्नता के पहले फुटाव के पश्चात् राजा उदास होकर बैठ गया, जैसे दुःखी हो कि अब किया क्या जाए!

मुख्यमंत्री ने उसकी उदासी का कारण पूछा और जब उसने बताया तो मुख्यमंत्री ने उसे खुश होने के लिए कहा कि परमात्मा की इच्छा थी कि उनकी बेटी का विवाह सय्यद से हो, क्योंकि वह अपने नगर गजनी में मोची का काम करता था। फिर राजा की प्रसन्नता की सीमा न रही और उसने अपनी बेटी सय्यद को सौंप दी; भारी दहेज दिया और अपने राज्य के एक प्रदेश का राज्यपाल बना दिया। इस प्रकार सय्यद राजा का दामाद बन गया और फकीर के साथ की गई भलाई और उसके परामर्श का पालन करने के लिए उसे उचित इनाम मिल गया!

(प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित “यूरोप की श्रेष्ठ कहानियां” से साभार)

अनुवाद व चयनः भद्रसैन पुरी

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