इतिहास / रोचक

पराजित राष्ट्र के नैरेटिव को चुनौती देने की जरूरत हैः डॉ. विक्रम संपत

राजीव रंजन

नई दिल्ली।

प्रसिद्ध साहित्यकार और प्राध्यापक चिनुआ अचेबे ने कहा है, “जब तक शेरों के अपने कहानीकार नहीं होंगे, तब तक शिकार का इतिहास हमेशा शिकारी का महिमामंडन करेगा!” उनका यह कथन भारत के इतिहास के संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण और सटीक है। इस बात को ध्यान में रख कर विचार करें, तो भारतीय इतिहास लेखन के परिदृश्य में डॉ. विक्रम संपत ‘शेरों के अपने कहानीकार’ के रूप में प्रमुखता से उभरे हैं। उनकी नवीनतम कृति “ब्रेवहार्ट्स ऑफ भारतः विग्नेट्स फ्रॉम इंडियन हिस्ट्री” इसका उदाहरण है, जिसका लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के ‘समवेत’ सभागार में हुआ। पुस्तक का लोकार्पण मुख्य अतिथि श्री राजीव चंद्रशेखर (केंद्रीय राज्यमंत्री, कौशल विकास एवं उद्यमिता तथा इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रोद्यौगिकी), विशिष्ट अतिथि श्री विनय सहस्रबुद्धे (पूर्व राज्यसभा सांसद एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद् के अध्यक्ष), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, पुस्तक के लेखक श्री विक्रम संपत, ‘पद्मश्री’ से सम्मानित इतिहासकार श्रीमती मीनाक्षी जैन, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् के सदस्य श्री संजीव सान्याल और वैज्ञानिक, लेखक व स्तंभकार श्री आनंद रंगनाथ की उपस्थिति में हुआ।

यह पुस्तक हमारे इतिहास में उपेक्षित पंद्रह गुमनाम नायकों और नायिकाओं के जीवन, समय और उनके कार्यों के बारे में बताती है। यह पुस्तक उन योद्धाओं के योगदान पर प्रकाश डालती है, जिन्होंने संघर्ष की लौ जलाए रखी। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने देश और समाज में आशा का संचार किया।

श्री राजीव चंद्रशेखर

मुख्य अतिथि श्री राजीव चंद्रशेखर ने लोकार्पण के अवसर पर कहा कि हम ऐसे समय में पढ़े और बड़े हुए है, जहां हमें बताया गया कि हमारे यहां नायकों का अभाव है। अगर कुछ नायक हैं भी, तो वे किसी खास वंश या परम्परा से रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह पुस्तक हमारे इतिहास के नायकों के बारे में बताते हुए भारतीय इतिहास के गौरव को सामने लाने का काम करती है। डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि यह वास्तव में ऐसी पुस्तक है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसे पढ़ते समय बीच में नहीं छोड़ा जा सकता। यह ऐसी पुस्तक है, जो आपको इतिहास के बारे में सोचने के लिए उकसाती है।”

डॉ. विनय सहस्रबुद्धे

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने पुस्तक विमोचन समारोह के बहाने डॉ. विक्रम संपत के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से जुड़ाव के बारे में बताया और कहा कि यह श्री संपत के घर आगमन जैसा है। गौरतलब है कि डॉ. विक्रम संपत दो वर्ष तक आईजीएनसीए के बेंगलुरु केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक रहे हैं। डॉ. जोशी ने पुस्तक के बारे में बात करते हुए कहा कि पुस्तक का शीर्षक, “ब्रेवहार्ट्स ऑफ भारतः विग्नेट्स फ्रॉम इंडियन हिस्ट्री” अपने आप में एक सशक्त कथन है, क्योंकि शीर्षक में ‘भारत’ लिखा गया है न कि ‘इंडिया’। उन्होंने दोहराया कि इतिहास का अपना महत्व है और इतिहास को फिर से देखने और फिर से लिखने की आवश्यकता है।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी

डॉ. विक्रम संपत ने कहा कि नायकों को चुनते समय उनके सामने समस्या यह थी कि किसे चुनें और किसे छोड़ें। उन्होंने यह भी कहा कि पराजित राष्ट्र के नैरेटिव को चुनौती देने की जरूरत है और उन्होंने इस पुस्तक के लेखन के माध्यम से ऐसा करने का प्रयास किया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह अंधराष्ट्रवाद नहीं है, बल्कि सच्चे और वास्तविक लोगों की कहानी है।
लोकार्पण के बाद भारत में इतिहास लेखन विषय पर गंभीर और सार्थक पैनल चर्चा हुई।

डॉ. विक्रम संपत

इस सत्र का संचालन डॉ. आनंद रंगनाथन ने किया। पुस्तक के बारे में टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इस पुस्तक ने इतिहास का पुनर्निर्माण किया है। वहीं प्रो. मीनाक्षी जैन ने कहा कि भारतीय इतिहास में बहुत से ऐसे नायक हैं, जिनके बारे में लिखा जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में उन्होंने असम के राजा पृथु का उदाहरण दिया, जिन्होंने बख्तियार खिलजी को पराजित किया था और खिलजी को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। उन्होंने सिंध के राजा दाहिर और हिन्दुशाही वंश के शौर्य का भी उदाहरण दिया। श्री संजीव सान्याल ने कहा कि उन्होंने एक बार विक्रम संपत से बातचीत में कहा था कि क्या हम सिर्फ पराजित ही हुए हैं? कुछ तो प्रतिरोध हुआ होगा, उसके बारे में क्यों नहीं बताया जाता। इस बात को विक्रम संपत ने गंभीरता से लिया। उसी का परिणाम है ये पुस्तक “ब्रेवहार्ट्स ऑफ भारतः विग्नेट्स फ्रॉम इंडियन हिस्ट्री”। सभी वक्ताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की, कि आजादी के बाद भारत में इतिहास लेखन बहुत एकांगी हुआ। उसे भारतीय दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, या बहुत कम लिखा गया।
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम प्रश्नोत्तर सत्र के साथ समाप्त हुआ।

पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के “समवेत” सभागार में उपस्थित सुधिजन

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