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48वां खजुराहो नृत्य समारोहः नृत्य का ताजगी भरा चेहरा

अजित राय, लेखक

फ्रेंच नृत्यांगना पेरिस लक्ष्मी के लिए खजुराहो में नृत्य करना एक सपने के पूरा होने जैसा है। दक्षिण फ्रांस में जन्मी और केरल के कोट्टायम में नृत्य की साधना कर रही इस युवा नृत्यांगना ने वर्षों पहले एक पर्यटक के रूप में जब खजुराहो नृत्य समारोह को देखा था, तब सोच भी नहीं सकतीं थीं कि एक दिन उन्हें भारत के दिग्गज कलाकारों के साथ दुनिया के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित भारतीय शास्त्रीय नृत्य के इस मंच पर नृत्य करने का अवसर मिलेगा। उनके माता-पिता ने भारत प्रेम के कारण उनका नाम लक्ष्मी रखा था। बाद में उन्होंने अपने नाम में पेरिस जोड़ लिया। अपने साथी कलामंडलम सुनील के साथ उनकी भरतनाट्यम् और कथकली की जुगलबंदी यह साबित करने के लिए काफी है कि कलाओं की दुनिया में देशों की सीमाएं खत्म हो जाती हैं। कुछ ऐसी ही अभिव्यक्ति जयपुर की ट्रांसजेंडर कलाकार देविका देवेंद्र (पूर्व नाम एस. मंगलामुखी) की थी। प्रचंड सामाजिक विरोध के बावजूद उन्होंने नृत्य की साधना की और अंतरराष्ट्रीय ख्याति पाई। खजुराहो के मंच पर उन्हें देखना एक विस्मयकारी अनुभव है।

खजुराहो के सौंदर्य में एक नया आयाम 1974 में मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा ‘खजुराहो नृत्य समारोह’ के माध्यम से जोड़ा गया, जिसे अब अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा मिल चुकी है। हर वर्ष फरवरी के अंतिम सप्ताह (20-26 फरवरी) में होने वाले इस समारोह के 48 आयोजन इस वर्ष तक हो चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। यह समारोह फरवरी 2024 में अपनी पचासवीं सालगिरह मनाने जा रहा है। शुरू में परिसर के भीतर मंदिर के चबूतरे पर नृत्य होता था, पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की आपत्ति के बाद महज तीन साल बाद ही मंदिर परिसर से बाहर चित्रगुप्त मंदिर की पृष्ठभूमि वाले अस्थायी मंच पर उसका आयोजन किया जाने लगा। यह सुखद बात है कि पिछले साल से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मंदिर परिसर के भीतर खजुराहो नृत्य समारोह के आयोजन की अनुमति प्रदान कर दी है। अब यह आयोजन मंदिर परिसर में कंदरिया महादेव और जगदंबा मंदिर के बीच बने भव्य मंच पर होता है। इससे इस समारोह के सौंदर्य को नई ऊंचाई मिली है।
खजुराहो नृत्य समारोह आज विश्व के श्रेष्ठतम समारोहों में गिना जाता है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से कला प्रेमी आते हैं। पिछले 48 वर्षों में खजुराहो नृत्य समारोह में भारत और विश्व के प्राय: सभी महत्वपूर्ण नृत्यकार शिरकत कर चुके हैं। इस मंच पर नृत्य करने का जादुई आकर्षण कुछ ऐसा है, कि हर नृत्य कलाकार के मन में सपना होता है कि वह एक बार अपनी नृत्य प्रस्तुति अवश्य करें। जो कलाकार यहां आ चुके हैं, वे भी यहां बार-बार आना चाहते हैं।

भारतीय नृत्य कला के सौंदर्य और आध्यात्मिकता के इस उत्सव में श्रृंगार, प्रेम, लास्य, भक्ति आदि सभी भाव मिलकर जादुई आनंद में बदल जाते हैं। दिन में आप खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियां देखते हैं और सांझ ढले भारतीय शास्त्रीय नृत्य, और सप्ताह भर की यह दैनंदिनी एक अनूठा भाव बनाती है। एक भाव, जिसमें नृत्य की गतियां स्थिर मूर्तियों के भीतर जाकर समाहित होती रहती हैं। ऐसा लगता है कि अप्सराएं मंदिर की दीवारों से निकलकर नर्तकियों के रूप में मंच से अवतरित हो रही हैं।

खजुराहो नृत्य समारोह को यदि भारतीय नृत्य की दुनिया का एक झरोखा मानें, तो मानना पड़ेगा कि यह दुनिया तेजी से बदल रही है। बड़ी-बड़ी शख्सियतें नेपथ्य में जा रही हैं, जबकि नृत्य की नई पीढ़ी की असरदार दस्तकें सुनाई दे रही हैं। नृत्य की सभी प्रस्तुतियों में परम्परा और पुनरावृत्ति के प्रति जबरदस्त आग्रह मौजूद हैं। पौराणिक धार्मिक गाथाएं या नायिका की भाव दशाएं ही नृत्य का आधार बनती हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इनमें नई विषय-वस्तु नहीं आ पा रही है। सबकुछ ठहर गया है। भक्ति का अतिरेक कई बार ऊबाऊ हो जाता है। राधा-कृष्ण की लीलाएं, शिव स्तुति, दुर्गा एवं सरस्वती की वंदना, रामायण, महाभारत, पुराण या वीरगाथा काल की कहानियां ही अक्सर दुहराई जाती हैं। कवि जयदेव की रचना ‘गीत गोविंद’ आज भी कलाकारों की पहली पसंद है। कथक में तबले और घुंघरू की जुगलबंदी आम है। नृत्य करते करते फ्रीज हो जाना और अचानक गतिमान होना भी आज रूढ़ि बन गई है। आधुनिक संदर्भों और वैकल्पिक कथा परम्पराओं की ओर प्राय: कम कलाकार जाते हैं। लेकिन नई पीढ़ी यह जोखिम उठा रही है, जिससे दुनिया भर में भारतीय शास्त्रीय नृत्य का नया बाजार विकसित हो रहा है। यह नृत्य का नया ताजगी भरा चेहरा है।

खजुराहो में नृत्य एक जादुई संसार में ले जाता है, जिसका अनुभव यहां आकर ही हो सकता है। नृत्य की कई बड़ी शख्सियतों ने स्वीकार किया है कि खजुराहो नृत्य समारोह में नृत्य करना हमेशा ही उनके लिए एक अनूठा और आध्यात्मिक अनुभव होता है। सच है कि खजुराहो की मूर्तियों के सौंदर्य के आस्वाद की तरह ही इस नृत्य समारोह का अनुभव कभी पुराना नहीं पड़ता, इसलिए लोग यहां बार-बार आते हैं।

उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे और उप निदेशक राहुल रस्तोगी, संस्कृति विभाग के निदेशक अदिति कुमार त्रिपाठी और प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला तथा संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर की टीम ने खजुराहो नृत्य समारोह को एक बहुआयामी पैकेज में पेश कर विश्वस्तरीय बना दिया है, जहां शास्त्रीय नृत्य की कई पीढ़ियां एक मंच पर संवाद कर रहीं हैं। इस टीम ने एक ओर मंदिर से सटे बाहरी परिसर में बुंदेलखंड की संस्कृति के हर पक्ष को जोड़कर यहां के आम लोगों का खयाल रखा है, तो युवाओं की समूह गायन मंडलियों को बुलाकर इसे नई पीढ़ी से जोड़ा है। मुख्य प्रस्तुति से एक घंटा पहले दविंदर सिंह ग्रोवर के निर्देशन में जबलपुर की लड़कियों के ‘श्री जानकी बैंड आफ वीमेन’ की प्रस्तुति माहौल में ताजगी भर दी। नॉलेज सीरीज (नेपथ्य श्रंखला) में इस बार मैत्रेयी पहाड़ी ने कथक गुरु पंडित बिरजू महाराज और कथक के चारों घरानों- लखनऊ, जयपुर, बनारस और रायगढ़- की यात्रा पर प्रदर्शनी लगाई, जहां हर शाम उनकी नृत्यांगनाएं आम जनता को कथक की बारीकियों से परिचित कराती हैं। प्रीति गडकरी के संयोजन में ललित कलाओं की विशाल प्रदर्शनी का पंडाल ‘आर्ट मार्ट’ कला रसिकों के आकर्षण का केंद्र बना रहा, जिसमें एक हिस्सा वरिष्ठ कलाकार लक्ष्मी नारायण भवसार पर फोकस किया गया था। हर सुबह जहां कलावार्ता में विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद संवाद हुआ, तो शाम को नृत्य से जुड़ी फिल्में दिखाई गईं। हस्त शिल्पियों के लिए ‘हुनर’ प्रदर्शनी लगाई गई।

मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने नृत्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सुनयना हजारीलाल (कथक, मुंबई) और भरतनाट्यम् दंपति शांता- वी पी धनंजयन (चेन्नई) को कालिदास सम्मान से सम्मानित किया। मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने खजुराहो में भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक राष्ट्रीय संदर्भ ग्रंथालय बनाने की घोषणा की। 48वें खजुराहो नृत्य समारोह की शुरुआत पंडित बिरजू महाराज की संस्था कलाश्रम (दिल्ली) के समूह नृत्य से हुई। सुजाता महापात्र (भुवनेश्वर), निरूपमा और राजेंद्र (बंगलूरू), नीना प्रसाद (तिरुवनंतपुरम), टीना तांबे (मुंबई), शर्वरी जमेनिस (पुणे), संध्या पुरेचा (मुंबई), श्वेता देवेंद्र एवं क्षमा मालवीय (भोपाल), शमा भाटे समूह (पुणे), तपस्या समूह, (इंफाल, मणिपुर) की नृत्य प्रस्तुतियों में कई तरह के नवाचार देखने को मिले।

(लेखक कला, साहित्य, रंगकर्म लेखन के क्षेत्र में सुपरिचित नाम हैं)

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