अरब के डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माताओं का अदम्य साहस
![](https://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/2400-780x470.jpg)
मिस्र का पांचवां अल गूना फिल्म फेस्टिवल- 2
अजित राय
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/Ajit-Rai-1.jpg)
चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने 58 देशों की हजारों मुस्लिम महिलाओं को “सबाया” (यौन गुलाम) बनाया।
मिस्र के पांचवे अल गूना फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई दस डाक्यूमेंट्री देखकर हैरानी होती है कि यहां के युवा फिल्मकार अपनी जान की बाजी लगाकर कैसे इतनी उम्दा फिल्में बना रहे हैं जिन्हें दुनिया भर के फिल्मोत्सवों में सराहा जा रहा है! पर्यावरण, मानवाधिकार, धार्मिक कट्टरवाद और शरणार्थी समस्या के प्रति विश्व जनमत को संवेदनशील बनाने में इन फिल्मों का बड़ा योगदान है। उदाहरण के लिए मिस्र के अली अल अरबी की फिल्म “कैप्टेंस आफ जअतारी” और सारा साजली की “बैक होम”, कुर्दिस्तान के होगीर हीरोरी की “सबाया” तथा लेबनान की जेइना डकाचे की “द ब्लू इनमेट्स” का नाम लिया जा सकता है। इसके अलावा, नीदरलैंड्स, रूस, यूक्रेन, नार्वे और स्विट्जरलैंड में भी इन दिनों बहुत उम्दा डाक्यूमेंट्री फिल्में बन रही हैं।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/1339002_sabayalolavmediaginestrafilm._63663.jpg)
चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने 58 देशों की हजारों मुस्लिम महिलाओं को “सबाया” ( सेक्स स्लेव) बनाया। इस विषय पर कुर्दिश मूल के स्वीडिश फिल्मकार होगीर हीरोरी की डाक्यूमेंट्री “सबाया” की आज दुनिया भर में बड़ी चर्चा हो रही है। होगीर हीरोरी अपनी जान जोखिम में डालकर उत्तरी सीरिया के यजिदी होम सेंटर में रात के अंधेरे में चालीस बार गए और यह फिल्म शूट की। उन्होंने उन कई औरतों के इंटरव्यू लिए, जिनका इस्लामिक स्टेट आईएसआईएस के लोगों ने अपहरण कर जबरन सेक्स स्लेव बनाया था। होगीर हीरोरी ने अल गूना फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के प्रदर्शन के बाद दर्शकों से संवाद करते हुए कहा कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती और वे अपनी बात अरबी या स्वीडिश भाषा में रखेंगे।
महमूद, जियाद और उनके समूह ने सिर्फ एक स्मार्ट फोन और पिस्तौल के बल पर रात के अंधेरे में सीरिया के सबसे ख़तरनाक कैंप “अल होल” से 258 यजीदी औरतों को निकाला था, जिन्हें वहां सेक्स स्लेव बनाकर रखा गया था। उनमें से 52 औरतें बलात्कार से गर्भवती हुईं और बच्चों को जन्म दिया। इसमें एक नौ साल की बच्ची मित्रा भी थी।
फिल्म में एक सबाया रोते हुए बताती है कि आईएसआईएस के लोगों, जिन्हें डाएश कहा जाता है, ने उसके पिता और भाई की हत्या कर दी और उसे जबरन उठा ले गए। वे उसे पीटते थे और फोन पर पोर्न (अश्लील वीडियो) देखते थे। वह कहती है कि उनके बलात्कार से पैदा हुए इस बच्चे का मैं क्या करूं? एक दूसरी सबाया पूछती है, “यदि अल्लाह है तो उसने इस्लाम के नाम पर यह सब कैसे होने दिया?” तीसरी औरत कहती हैं कि सीरिया-ईराक सीमा पर उसे पंद्रह बार बेचा खरीदा गया। वह पांच साल इस्लामिक स्टेट की कैद में रही। चौथी औरत कैद से रिहा होते ही अपना काला बुर्का जला देती है। पांचवी औरत कहती है कि उसके माता-पिता है, भाई-बहनें हैं, पर वह इस कैद में अकेली है। फिल्म में इसी तरह की औरतों की आपबीती है, जिन्हें जबरन सेक्स स्लेव बनाया गया। महमूद और उसके साथी जब इन औरतों को मुक्त कराकर कार में भाग रहे हैं तो वे देखते हैं कि आईएसआईएस के डाएश ने रास्ते में कई गांवों को आग के हवाले कर दिया है। पता चलता है कि इस्लामिक स्टेट के इन कैम्पों में 58 देशों से लाई गई हजारों मुस्लिम महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाकर रखा गया है।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/Sabaya-1-1-720x1024.jpg)
सीरिया और ईराक के जिन हिस्सों पर आईएसआईएस ने कब्जा किया था, उससे सटे सिंजर जिले पर उन्होंने हमला किया और तीन लाख की आबादी वाले याजीदी समुदाय के शहर से अगस्त 2014 में हजारों औरतों को जबरन उठा लाए और उन्हें सेक्स स्लेव बनाया। जब सीरिया की सेना ने विदेशों की मदद से आईएसआईएस को वहां से खदेड़ दिया तो अधिकतर सेक्स स्लेव औरतों को अल होल कैंप में छुपा दिया गया, जहां से महमूद और उनके साथियों ने उन्हें आजाद कराया।
“सबाया” फिल्म के निर्देशक होगीर हीरोरी का जन्म कुर्दिस्तान में हुआ था, पर 1999 में वे शरणार्थी बनकर स्वीडन में आ गए। इस फिल्म को सन डांस फिल्म फेस्टिवल में ‘वर्ल्ड डाक्यूमेंट्री प्राइज’ और हांगकांग अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में जूरी प्राइज से नवाजा गया है। यह फिल्म दुनिया के पचास फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी है और इसे करीब तीस टेलीविजन चैनल प्रसारित कर चुके हैं। फिल्म में कैमरा वास्तविक व्यक्तियों, जगहों और घटनाओं को दिखाता है और तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। उन गुलाम औरतों की आपबीती उन्ही की जुबानी सुनाई गई है और उनके कैम्पों की अमानवीय हालत देखकर डर लगता है।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/Captains-1.jpg)
मिस्र के अली अल अरबी की डाक्यूमेंट्री “कैप्टेंस आफ जअतारी” जोर्डन के जअतारी शरणार्थी शिविर में रहने वाले दो नौजवान फुटबॉल खिलाड़ियों महमूद और फौजी के जीवन की सच्ची घटनाओं पर फोकस है, जिन्हें अपनी मिहनत के कारण अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का अवसर मिलता है। महमूद और फौजी शरणार्थी शिविर में दिन-रात फुटबॉल खेलने का अभ्यास करते हैं। उन्हें लगता है कि इस खेल से ही उन्हें आजादी मिलेगी। पहले महमूद और बाद में फौजी का चयन एक अंतरराष्ट्रीय टुर्नामेंट के लिए हो जाता है और वे कतर की राजधानी दोहा आ जाते हैं। दोनों जिंदगी में पहली बार हवाई जहाज में यात्रा करते हैं और पांचसितारा होटल में ठहरते हैं।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/Captains-2-1024x875.jpg)
उनकी कहानी देखकर महान फुटबॉल खिलाड़ी डिएगो माराडोना का बचपन याद आता है, जब वे अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स की झोपड़पट्टियों में दाने-दाने को मोहताज थे। दोहा में फाइनल मैच के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महमूद सीरिया के विस्थापितों की ओर से कहता है कि शरणार्थी शिविरों में रह रहे नौजवानों को अवसर चाहिए, दया नहीं। इसके तीन साल बाद हम देखते हैं कि ये दोनों खिलाड़ी अपने शिविर में बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे हैं और अपने भविष्य को लेकर आशंकित है।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/PHOTO-2021-01-06-11-31-322-2.jpg)
सारा शाजली की डाक्यूमेंट्री “बैक होम” कोरोना महामारी के दौरान पेरिस से मिस्र लौटने और अपने घर परिवार और माता पिता के साथ रहते हुए अपनी जड़ों की खोज की सच्ची कहानी है। लेबनान की जेइना डकाचे की फिल्म “द ब्लू इनमेट्स” जेलों में बंद कैदियों के लिए की गई थियेटर चिकित्सा का दस्तावेज है। जेइना डकाचे पहले बेरूत की औरतों की बाबदा जेल में गईं और एक नाटक के जरिए उनके हालात, भय और सपनों को सामने लाया। यह फिल्म एक लंबे प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसमें रौमेह जेल की ब्लू बिल्डिंग में मनोरोगी हो चुके कैदियों की समस्याओं को नाटक के माध्यम से बताया गया है।
नीदरलैंड्स के गाइडो हेंड्रिक्स की फिल्म “ए मैन एंड ए कैमरा” सिनेमा का अप्रत्याशित रोमांच पैदा करती है। एक उत्साही युवक एक कैमरा लेकर एक सुबह अनायास एक कॉलोनी में लोगों की दिनचर्या को शूट करने लगता है। इस क्रम में उसे कई अप्रत्याशित अनुभव होते हैं। हर इंसान का चेहरा एक अलग कहानी कहता है।
![](http://www.sarajahanlive.com/wp-content/uploads/2021/11/20211017_014648-1024x768.jpg)
स्विट्जरलैंड की श्वेतलाना रोडीना और लारेंट स्टूप की फिल्म “ओस्ट्रोव- लॉस्ट आईलैंड”, कैस्पियन सागर के इस द्वीप पर कभी तीन हजार परिवार रहते थे, अब मुश्किल से पचास बचे हैं, जो पलायन की तैयारी में है। यहां मानव जीवन की कोई सुविधा नहीं है। इवान नामक एक आदिवासी बाशिंदा रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को खत लिखकर मदद की अपील करता है।