कला/संस्कृति/साहित्य

निमाड़ में सनातन संस्कृति की छटा

अगर देश की संस्कृति से रूबरू होना है तो हमें गांव में जाना होगा। क्योंकि भारत गांवों में बसता है। महानगरों की संस्कृति में तो इंडिया होता है। निमाड़ में सनातन संस्कृति की छटा है। बोली को मातृ बोली कहा गया है। पितृ बोली नहीं, क्योंकि व्यक्ति का सारस्वत विकास अपनी जननी के माध्यम से ही संभव होता है।

यह बात निमाड़ लोक संस्कृति न्यास खंडवा द्वारा रविवार को पद्मश्री स्व. रामनारायण उपाध्याय की स्मृति बेला में आयोजित प्रतिष्ठा आयोजन गणगौर व सिंगाजी सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए समाजसेविका पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन सनावदिया इंदौर ने कही। बतौर अतिथि साहित्यकार सदाशिव कौतुक ने कहा कि शब्द की भूमिका हर जगह है। वरिष्ठ छायाकार व कहानीकार बंशीलाल परमार ने भी संबोधित किया। अतिथि परिचय न्यास अध्यक्ष शिशिर उपाध्याय ने दिया। संस्था परिचय न्यास सचिव हेमंत उपाध्याय ने प्रस्तुत किया। स्वागत गीत विजयलक्ष्मी दीक्षित ने प्रस्तुत किया। बधाई, गणगौर आदि निमाड़ी गीतों की प्रस्तुति पूर्णिमा चतुर्वेदी भोपाल, शालिनी बड़ोले मुंबई व मनीषा शास्त्री ने दी। वयोवृद्घ सुभद्रा उपाध्याय ने भी ‘अच्छा लोग नऽ की अच्छी बात’ कविता सुनाई।

जवं सी तू गयोज गांव सी का विमोचन

बड़वाह के गीतकार शिशिर उपाध्याय की प्रथम निमाड़ी पोथी ‘जवं सी तू गयोज गांव सी’ का लोकार्पण अतिथियों ने किया। इंदौर की साहित्यिक संस्था हिन्दी परिवार ने श्री उपाध्याय का सम्मान किया। पुस्तक समीक्षा मालवी कवि व समीक्षक डॉ. राजेश रावल सुशील ने पढ़ी। इसके पूर्व बोली और भाषा के 9-9 रत्नों को सम्मानित किया गया। इसमें गणगौर सम्मान 2007 से 2015 की श्रृंखला में पं. दिनकरराव दुबे ‘दिनेश’ बड़वाह, पं. विष्णुप्रसाद राजा बाबू डोंगरे करही, सहदेव सिंह इनामदार ‘मलय’ गोगांवा, मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’ खंडवा, सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जबलपुर, कुंवर उदयसिंह ‘अनुज’ मंडलोई धरगांव, डॉ. पार्वती व्यास ‘प्रीति’ खरगोन, गोविंद सेन मनावर व हरीश दुबे महेश्वर को नवाजा गया। वहीं सिंगाजी सम्मान 2007 से 2015 से लिए अशोक गीते, डॉ. सैयद सफदर रजा ‘खंडवी’, कैलाश मंडलेकर, बैजनाथ सराफ ‘बैजू भाई’, गोविंद कुमार ‘गुंजन’, डॉ. प्रतापराव कदम सभी खंडवा, शिखरचंद छाजेड़ करही, इस्माइल ‘लहरी’ इंदौर व डॉ. पुष्पा पटेल खरगोन को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन राकेश राणा ने किया। आभार जयश्री उपाध्याय ने माना।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button