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बुंदेलखंड: किसान जानवरों के हवाले कर रहे खेत

भोपाल: मानसून की बेरुखी ने एक बार फिर बुंदेलखंड में सूखे के हालात बना दिए हैं, खेतों में फसल तो खड़ी है लेकिन उसमें दाना नहीं आया है, यही कारण है कि कई स्थानों के किसान फसल काटने में श्रम और पैसे खर्च करने की बजाय खेतों को जानवरों के हवाले कर रहे हैं।

बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात कुल 13 जिलों को मिलाकर बनता है, इस इलाके की दुनिया में पहचान सूखा, भुखमरी और पलायन के चलते बनी है। बीते दो वर्षो से कम वर्षा के चलते सूखे की मार झेल रहे इस इलाके में इस बार भी औसत से कम बारिश हुई है। किसानों ने अच्छी बारिश की आस में मूंग, उड़द, सोयाबीन व तिल बोई थी, मगर कभी तेज गर्मी और कभी बारिश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। 

टीकमगढ़ जिले के दरगांय के किसान खल्लू अहिरवार के पास तीन एकड़ जमीन है और उस पर उसने उड़द बोई थी, खेत को देखकर ऐसे लगता है, मानों अच्छी फसल आई हो, मगर पेड़ पर फली नहीं है, जिन पेड़ों पर फली है तो उनमें दाने नहीं हैं। इसके चलते उसने फसल को काटने की बजाय जानवरों के हवाले छोड़ दिया है। 

खल्लू बताता है कि अगर उसके पास जानवर होते तो वह फसल को काटकर जानवरों के लिए चारे के तौर पर रखता, मगर वह तो अपने जानवर काफी पहले बेच चुका है। लिहाजा उसके लिए बगैर दाने वाली फसल का कोई मतलब नहीं है। उसके लिए तो फसल कटाई में श्रम और अर्थ की बबार्दी ही है। 

इसी तरह खेत पर खड़ा रमेश अपने को कोस रहा है। उसका कहना है कि उसने इस बार बड़ी उम्मीद से उड़द बोई थी मगर उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। खेत पर फसल जरूर खड़ी दिख रही है, मगर यह जानवर के चारे से ज्यादा कुछ नहीं है। उड़द उसे खाने नहीं मिलेगी, मगर वह चारे से जानवरों का पेट तो भर ही लेगा। 

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छह जिलों में से पांच में कम बारिश हुई है और सरकार ने टीकमगढ़ को तो सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। वहीं उत्तर प्रदेश में भी कमोबेश यही हालत है, मगर सरकार ने अभी तक किसी जिले को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है। 

कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर.के. प्रजापति भी मानते हैं कि बुंदेलखंड के बड़े हिस्से में औसत बारिश नहीं हुई है। वहीं मौसम में आए बदलाव ने फली में दानों को विकसित नहीं होने दिया है। एक तरफ फूल फली में नहीं बदला और अगर बदला भी है तो उसका दाना कमजोर रह गया है। इससे पैदावार अच्छी नहीं हुई है।

बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र व्यास कहते हैं कि इस इलाके के किसानों की किस्मत में ही समस्याओं का अंबार है। एक तरफ राजनीतिक दलों के लिए यहां की समस्याएं राजनीतिक लाभ तलाशने का मुद्दा है, तो किसानों को सुविधाएं मिलती नहीं है, दूसरी ओर प्रकृति उनसे रुठ सी गई है। 

पिछले तीन वर्षो से इस इलाके में सूखे के हालात हैं, मगर सरकारें कभी भी बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाती है। इसी का नतीजा है कि फसलों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता है। 

इस इलाके का किसान एक बार फिर मुसीबत के भंवर जाल में फंस गया है, अब देखना है कि दोनों राज्यों की सरकारें किस तरह उसे इस मुसीबत से बाहर निकालती हैं अथवा बीते वर्षो के हालात एक बार फिर दोहराए जाते हैं। 

संदीप पौराणिक

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