एक ‘द्रोही कौरव’ की कथा है अनिकेत का उपन्यास युयुत्सु
उपन्यास : युयुत्सु
लेखक : अनिकेत एस. शर्मा
प्रकाशक : ऑथर्स चैनल, बेंगलुरु (कर्नाटक)
मूल्य : 299 रुपये
समीक्षकः राजीव रंजन
जब हम कौरवों की बात करते हैं, तो दुर्योधन, दु:शासन आदि 100 भाइयों की छवि ही मन-मस्तिष्क में उभरती है। युयुत्सु का हमें शायद ही ख्याल आता है, जो महाराज धृतराष्ट्र का ही पुत्र और दुर्योधन का सौतेला भाई था। महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष था। जो धर्म के लिए लड़े,वो पांडव और जो अधर्म के रास्ते पर थे, वे कौरव। युयुत्सु धर्म के लिएअपने भाइयों का साथ छोड़कर पांडवों के साथ आ गया था, शायद इसीलिए भारतीय मानस उसे कौरव के रूप में नहीं देखता। हालांकि उस पर अपने भाइयों से विश्वासघात करने का लांछन भी लगा, लेकिन उसने धर्म का ही साथ दिया। राम-रावण युद्ध में जो स्थितिविभीषण की थी, कुछ वैसी स्थिति महाभारत में युयुत्सु की दिखाई देती है। हालांकि विभीषण से भारतीय जनमानस अच्छे-से परिचित है, लेकिन युयुत्सु के बारे में कम ही लोग जानते हैं।इसी ‘द्रोही कौरव’ को अपने उपन्यास का नायक बनाया है युवा लेखक अनिकेत शर्मा ने।
यह उनका दूसरा उपन्यास है। अभिमन्यु पर आधारित अपने पहले उपन्यास ‘चक्रव्यूह’ का कथानक भी अनिकेत नेमहाभारत से लिया था।उनकी खासियत है कि वे कथानक पौराणिक आख्यानों से लेते हैं, लेकिन पेश उसे अपने दृष्टिकोण से करते हैं। ‘युयुत्सु’ में भी उन्होंने कथा को युयुत्सु के नजरिये से विस्तार दिया है, जो वस्तुत: उसके चरित्र के बारे में उनकी अपनी व्याख्या है। उपन्यास की भाषा सहज और शैली रोचक है। यह महाभारत के एक कम प्रचलित पात्र को जानने का अवसर उपलब्ध कराता है।उस पर एक अलग नजरिये से गौर करने को प्रेरित करता है।