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सच्ची यौन आजादी का मतलब खुला विकल्प

नई दिल्ली: विख्यात लेखिका राचेल हिल्स का कहना है कि यौन आजादी का मतलब इस सोच से छुटकारा हासिल करना है कि सेक्सुअल होने का कोई तरीका किन्हीं अन्य तरीकों की तुलना में अधिक नैतिक है।

हिल्स की नई और बहुत अधिक बिकने वाली किताब ‘द सेक्स मिथ : द गैप बिटवीन आवर फैंटेसी एंड रिएलिटी’ में कहा गया है कि यौन आजादी का अर्थ किसी खास बने बनाए सांचे के हिसाब से सोचने के बजाय कई विकल्पों में से किसी एक को चुनने की आजादी है।

हिल्स ने आईएएनएस को न्यूयार्क से भेजे अपने ई-मेल साक्षात्कार में (किसी भारतीय प्रकाशन को दिया गया पहला साक्षात्कार) कहा, “मुझे लगता है कि महिलाओं की इच्छा को मान्यता देने की संस्कृति बढ़ रही है। इससे महिलाओं को पोर्नोग्राफी जैसी चीजें देखने के लिए पहले से अधिक सामाजिक अनुमति मिल रही है।”

उन्होंने इस बात को खारिज किया कि यौन आजादी बढ़ने के साथ ही सभी लोगों का यौन व्यवहार भी एक जैसा हो जाएगा। भले ही इसका अर्थ हफ्ते में छह बार सेक्स करना, पोर्न देखना या ऐसी ही कोई और बात हो।

हिल्स ने कहा, “कुछ लोग ऐसे होते हैं जो रोज सेक्स करना चाहते हैं लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो महीने में एक बार या इससे भी कम करना चाहें। इसमें कोई भी किसी से अच्छा या बुरा नहीं है। सच यह है कि इंसानों में सेक्स की इच्छा अलग-अलग होती है।”

हिल्स ने कहा कि एक अच्छी बात यह हुई है कि अब महिलाओं की सेक्स की इच्छा, इसमें उन्हें मिलने वाली खुशी-संतुष्टि पर ध्यान दिया जा रहा है। हिल्स ने कहा, “ऐसे यौन संबंध सही नहीं हैं जिसमें बस एक ही इंसान आनंद हासिल करे।”

हिल्स के मुताबिक यौन व्यवहार हर युग में एक तरह के ‘मिथ’ से बंधा रहा है। इस मामले में हमें बताया जाता रहा है कि सेक्स है क्या और इसे कैसा होना चाहिए।

वह अफसोस के साथ कहती हैं कि ये बातें सेक्स के बारे में दो तरह की बेचैनी पैदा करती हैं। एक तो हमें बताया जाता रहा है कि हम गंदे हो जाएंगे अगर हम इसे करेंगे और दूसरी यह कि अगर हम इसे पर्याप्त बार नहीं करेंगे तो असफल व्यक्ति साबित होंगे।

उन्होंने कहा कि ‘बेहतर सेक्स’ और कुछ नहीं बस यह है कि दोनों साथी कितना आनंद हासिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेक्स की अवधि की कोई तयशुदा सीमा नहीं है। यह तो हमें जबरन बेचा जाता है कि अमुक फार्मूला सेक्स के लिए अच्छा है।

किताब ‘द सेक्स मिथ..’ उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड में अगस्त 2015 में प्रकाशित हुई। 

निशांत अरोड़ा

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